बौद्ध धर्म में संगीत का स्थान

Authors

  • यश त्यागी Author

Abstract

भारत की सांस्कृतिक गतिविधि के परिज्ञान के लिए बौद्ध साहित्य का परिशीलन नितान्त आवश्यक है। बौद्ध वांग्मय में ईसवी पूर्व से लेकर ईसवी के अनन्तर का सांस्कृतिक मानचित्र अविच्छिन रूप में उपलब्ध होता है महत्त्व की बात यह है कि इस साहित्य में उपलब्ध संगीत विषयक सामग्री का व्यक्तिकरण भारत की प्राचीन शिल्प एवं चित्र कला में उपलब्ध है, जो तत्कालीन वाद्य एवं नृत्य के स्वरूपों का उद्घाटन के लिए नितान्त आवश्यक है। बौद्धकालीन संस्कृति में संगीत के कई पड़ाव मिलते हैं। भारतीय कलाओं में कई नवाचार बुद्ध के बाद देखने में आते हैं। मांगलिक प्रतीकों की संख्या में विस्तार के साथ ही सांगीतिक वाद्यों को प्रतिमाओं और फलकों में उकेरा जाने लगा। स्तूपों आदि के स्तम्भों पर ये प्रतीक कम नहीं मिलते मगर बुद्ध के जीवन पर लिखी गई कथाओं में भी संगीत के सोपान दिखाई देते हैं। बौद्ध काल में जनमानस के जन-जीवन में संगीत कला का समावेश था और बौद्धकालीन संपन्न परिवारों में संगीत का सम्यक् अध्ययन भी किया जाता था। बोधिसत्व संगीत तथा नाट्य कला के अच्छे ज्ञाता थे तथा उनके परिवार की सभी महिलाएँ भी संगीत में निपुण थी। ललितविस्तार ग्रंथ में यह भी वर्णित है कि महात्मा बुद्ध की माता माया देवी स्वयं कला निपुण थी। 

Published

2000

Issue

Section

Articles