हिन्दी के प्रवासी साहित्य में प्रतिबिंबित वैश्विक संस्कृति के विविध आयाम
Abstract
स्वयं अंजना संधीर ने इस मंत्र को अपने जीवन में अपनाया तथा सात-आठ वर्ष अमेरिका में रहकर स्वदेश वापिस चली आई । अतः कह सकते हैं कि प्रवासी काव्य में केवल डायस्पोरा का भाव ही नहीं अपितु प्रवासी हिन्दी काव्य में अपने परिवेश और तत्कालीन देश की बहुकोणीय छवि भी विद्यमान है । यह हिन्दी साहित्य के लिए नई और महत्त्वपूर्ण बात है ।
Published
2025-05-12
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Articles